एक चुप्पी जो बहुत कुछ कहती है…”

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विशेष लेख

साक्षी कुसुवाहा की कलम से

वो चुप है, लेकिन उसकी आँखें सब कुछ बोलती हैं। वो हर दिन मुस्कुरा ने की कोशिश करती है, लेकिन उसके होठों पर हँसी लाने से पहले ही कोई कह देता है — “बहुत हँसने लगी हो आजकल, लड़की होकर इतनी खुलकर नहीं हँसती…”
क्यों? क्या हँसना सिर्फ मर्दों का हक़ है? क्या एक लड़की की हँसी उसके चरित्र का प्रमाण बन जाती है?

हम उस समाज में जी रहे हैं जहाँ एक लड़की की सबसे बड़ी पहचान होती है — “घर संभालने वाली, सहनशील, चुप रहने वाली…”
यहाँ अगर बहू हँसे, तो कहा जाता है, “शरम नहीं आती? सास-ससुर के सामने दाँत दिखा रही है।”
अगर पति उसकी मदद कर दे तो सुनने को मिलता है, “बहू ने अपने जाल में फंसा लिया है।”
लेकिन वही बात जब किसी बेटी के लिए होती है, और दामाद काम में हाथ बंटाता है — तो लोग तारीफों के पुल बांध देते हैं — “क्या किस्मत पाई है बेटी ने, इतना समझदार दामाद मिला है!”

क्यों? बहू भी किसी की बेटी है ना? लेकिन नहीं… बहू बनते ही उसके हक़, उसकी आज़ादी, उसका हँसना तक समाज को खटकने लगता है।

ये वही चुप्पी है — जो लड़कियों को बचपन से सिखाई जाती है।
“ज्यादा मत बोलो, लोग बातें बनाएंगे।”
“हँसोगी तो गलत समझा जाएगा।”
“दूसरों की मदद मांगोगी तो निकम्मी कहलाओगी।”

एक लड़की को सिखाया जाता है कि उसका असली मकसद है — घर के काम करना, खाना बनाना, और सबकी सुनते रहना।
उसकी हँसी भी दबा दी जाती है, उसके सपने भी।
और जब वो आवाज़ उठाती है — तो कहा जाता है — “बहुत ज़बान चलाने लगी है।”

हम चुप रहते हैं… क्योंकि हमें सिखाया गया है सहना।
लेकिन सच ये है — ये चुप्पी अब बोझ बन चुकी है।

हर बार जब एक पति अपनी पत्नी का साथ देता है, तो समाज उसे ताना मारता है।
हर बार जब एक लड़की खुले दिल से हँसती है, तो लोग उसके चरित्र पर सवाल उठाते हैं।
हर बार जब एक औरत थक कर बैठती है, तो कहा जाता है — “कामचोर है, आजकल की लड़कियाँ कुछ नहीं करतीं।”

तो क्या औरत सिर्फ घर के काम के लिए बनी है?

नहीं!

अब ये चुप्पी टूटनी चाहिए।
अब और नहीं —
अब हर लड़की को हक़ है खुलकर हँसने का, खुलकर जीने का।
हर बहू को हक़ है पति के साथ बराबरी से जीने का — और बिना किसी ताने के।

जो समाज औरत की हँसी से डरता है, वो खुद सबसे बड़ा मज़ाक बन चुका है।

अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ चुप्पी न सुनें — उसे आवाज़ दें।
क्योंकि ये चुप्पी अब चीख बन चुकी है। और अगर तुमने नहीं सुनी… तो एक दिन ये चीख तुम्हें भी झकझोर देगी।


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